19 March 2022 05:33 PM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। आठ वर्षीय बालक के साथ हुई हैवानियत के मामले में पुलिस का रवैया काफी ढ़ीला व लापरवाही भरा नजर आ रहा है। बालक पीबीएम में भर्ती है। हैवानों ने उसकी जीभ काट दी थी। एक आंख फोड़ डाली। जबड़ा व दांत तोड़ डाले थे। गुरूवार सुबह सूरतगढ़ सिटी थाना क्षेत्र के जंगल में महिलाओं ने बच्चे को देखा था। बोरी में डालकर फेंके गए इस बच्चे के हाथ पैर बंधे थे। सबने उसे मृत ही समझा। सूचना पर पहुंची पुलिस ने संभाला तो नब्ज हल्की चल रही थी। उसे सूरतगढ़ अस्पताल ले जाया गया, जहां से श्रीगंगानगर व श्रीगंगानगर से पीबीएम रेफर कर दिया गया। पीबीएम में चिकित्सक उसका विशेष ध्यान रख रहे हैं। एएसआई बलजीत सिंह व एक अन्य पुलिसकर्मी भी बीच बीच में संभालने आ रहे हैं। असहाय सेवा संस्थान के राजकुमार खड़गावत, रमजान व अशोक उसकी देखभाल कर रहे हैं। खड़गावत दो दिन से अस्पताल में ही है।
:-मुकदमा तक नहीं हुआ दर्ज, पुलिस जांच भी ढ़ीली-- सूरतगढ़ पुलिस ने इस बेहद संवेदनशील मामले में अब तक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ आई आर) तक दर्ज नहीं की है। आज तीसरा दिन है। सूरतगढ़ पुलिस का कहना है कि बच्चे की देखभाल के लिए पुलिस कर्मी बीकानेर भेजे हुए हैं। परिवादी ना मिलने से मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है। बता दें कि बच्चे के साथ हैवानियत की हदें पार करने के इस मामले में उसके माता पिता ही शक के घेरे में हैं। बावजूद इसके पुलिस मुकदमा दर्ज न करने के बहाने बना रही है। हालांकि अभी इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि आरोपी हैवान उसके अपने ही हैं। एएसआई बलजीत सिंह के अनुसार जीभ कटी होने के कारण बच्चे की बात समझ नहीं आ रही है। मगर उसने जो बताया उससे ऐसा लगा कि वह अपनी मां बाबा के साथ किसी प्लेटफार्म नंबर एक पर आया था। इसके बाद ही यह खौफनाक वारदात हुई।
दूसरी तरफ बच्चा मां बाप के पास जाने की बात से इन्कार कर रहा है। ऐसे में शक उन्हीं पर जाता है। घटना के पीछे कोई बड़ा रहस्य भी हो सकता है। मामला तंत्र कर्म से जुड़ा भी हो सकता है। तो वहीं ऐसा भी संभव है कि किसी राज के खुलने के डर से भी हैवानियत की गई हो।
पीबीएम में नहीं पहुंचे बड़े अधिकारी, नेता और समाजसेवी: बच्चे को भर्ती हुए आज तीसरा दिन है। अकेले बेसहारा बच्चे को संभालने अक्सर फ्रेम में दिखने वाले नेता, अधिकारी व समाजसेवी नहीं पहुंचे, जबकि मामला अत्यधिक संवेदनशील है। अगर उसे संभालने वाले पहुंचते तो उसका डर खत्म होता। श्रीगंगानगर से भी कोई बड़ा अधिकारी बच्चे की सुध लेने नहीं पहुंचा।
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