11 August 2021 07:34 PM
-व्यंग्यनामा : -रोशन बाफना
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तुम्हें ही जीने का उत्साह जगाना होगा, कोई दूसरा तुम्हारी कोई मदद नहीं करेगा। हो सकता है तुम प्रेम में हार चुके हो। संभव है तुम रोजी-रोटी के संघर्ष से थक चुके हो। मुमकिन है कि किसी तरह की हीनभावना तुम्हें मरने को मजबूर कर रही हो। सबकुछ संभव है, क्योंकि ये जंगल है, यहां सब अपने शिकार की तलाश में है। तुम जिस समाज में रहते हो वह अपनी समाज की चिंता में व्यस्त है। न जाने कितने दान धर्म का भार भी उस पर है। जिस सरकार को तुमने चुना है वह देश के विकास में व्यस्त है। उसे रोटी खाने का भी समय नहीं है। गली गली पेरिस जैसी सड़कें बन रही है। कचरा मिलना तो रेमडेसिवर इंजेक्शन मिलने से भी अधिक मुश्किल है। जल संकट का तो नाम ही लुप्तप्राय हो चुका है। सरकार की बदौलत लोगों को पैसे गिनने से भी फुर्सत नहीं है। साक्षरता तो देश की जनसंख्या से भी अधिक हो गई है। अब बताओ सरकार तुम्हारे लिए कहां से समय निकाले!
प्रशासन सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में इतना व्यस्त है कि उसे मरने की भी फुर्सत नहीं है। पुलिस अपराध रोकने के लिए गली गली तैनात है। न्याय की तो अब कोई मांग ही नहीं करता क्योंकि अन्याय ही खत्म हो चुका है।
अब विधाता से मिली सांसों की रक्षा तुम्हें खुद ही करनी होगी। तुम्हें ही खुद को मजबूत कर जीते रहना होगा। आत्महत्या करके भी क्या करोगे। मृत्यु तो सत्य है। यह सत्य समय आने पर स्वयं ही तुमसे साक्षात्कार करेगा। जिसके लिए तुम्हें श्रम करना है वह तो जीवन है। संघर्ष तब तक ही किया जा सकेगा जब तक तुझमें जीने की उत्कंठा होगी। अपने अंदर जीने की प्यास जगाओ। समाज, सरकार, प्रशासन और पुलिस बहुत व्यस्त है, उनका भार मत बढ़ाओ। तुम आत्मनिर्भर भारत में जी रहे हो। मरने का विचार आए तो खुद ही खुद को जीने की राह दिखाना। कुछ भी करना मगर मरना मत। मरके करोगे भी क्या? मर गए तो तुम्हारी ज़िंदगी के साथ तुम्हारी मौत की फाइल भी बंद हो जाएगी। तुम्हारे मरने से किसी को फायदा नहीं होगा। इसलिए जीना सीखो, संघर्ष करना सीखो। तब तक संघर्ष करो जब तक तुम एक प्रेरणादाई कहानी ना बन जाओ।
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