15 May 2021 02:00 PM
-रोशन बाफना की रिपोर्ट
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। कोरोना के बीच देशभर में ब्लैक फंगस के मामले सामने आने लगे हैं। सूत्रों के मुताबिक ब्लैक फंगस का शिकार हो चुके मरीजों की आंखें, जबड़ा व दांत तक निकालने पड़ रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर में अब तक कुछ राज्यों में ऐसे मामले आए हैं। मीडिया सूत्रों के मुताबिक राजस्थान के जयपुर में भी दूसरी लहर में संक्रमित हुए कई मरीजों को ब्लैक फंगस हुआ है। जिनका इलाज जारी है।
कोरोना की पहली लहर में संक्रमित हुए मरीजों को भी ब्लैक फंगस हुआ था। उस दौरान बीकानेर में भी ब्लैक फंगस के 5-7 मामले सामने आए थे। हालांकि इस सीजन में बीकानेर ब्लैक फंगस से सुरक्षित है।
ब्लैक फंगस को लेकर देशभर में भय का माहौल चल रहा है। भय के बीच अधूरी जानकारी की वजह से लोग भ्रमित भी हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर ब्लैक फंगस को कोरोना वायरस का कुप्रभाव ही बताया जा रहा है, जोकि बिल्कुल ग़लत है। वहीं स्ट्रॉयड लेने वाले कोरोना मरीजों को ब्लैक फंगस होने के दावे किए जा रहे हैं। स्ट्रॉयड से ब्लैक फंगस होने की बात पूरी तरह सही नहीं है।
ख़बरमंडी न्यूज़ ने बीकानेर पीबीएम अस्पताल के अधीक्षक डॉ परमेंद्र सिरोही से ब्लैक फंगस की हकीकत जानी। सिरोही के अनुसार दवाईयों से ठीक नहीं होने वाले कोरोना मरीजों को स्ट्रॉयड दिया जाता है। इसका पांच दिन का कोर्स होता है। शुगर के मरीजों में स्ट्रॉयड की वजह से शुगर लेवल बढ़ जाता है। ऐसे में उन्हें शुगर चेक करते रहना पड़ता है, जरूरत पड़ने पर इन्सूलिन भी लगाना पड़ जाता है। लेकिन पांच दिन के सामान्य कोर्स से ब्लैक फंगस नहीं होता।
डॉ सिरोही के अनुसार ब्लैक फंगस केवल उन कोरोना मरीजों को ही होता है जो शुगर से पीड़ित हैं तथा कम से कम एक माह तक स्ट्रॉयड लिए जाते हैं। उसके साथ ही लगातार एक माह से अधिक ऑक्सीजन पर भी रहते हैं। डॉ सिरोही का कहना है कि पिछली सीजन में कुछ मरीजों ने डॉक्टरी सलाह नहीं मानी। डॉक्टरों द्वारा मना करने पर भी 1 से 2 माह तक अस्पताल में भर्ती रहे। लगातार ऑक्सीजन पर रहे तथा स्ट्रॉयड लेते रहे। ऐसे मरीजों को ब्लैक फंगस हो गया। कोरोना ठीक होकर सामान्य होते ही घर पर चले जाने वाले मरीजों में ब्लैक फंगस नहीं देखा गया।
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