06 January 2021 05:35 PM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। कहते हैं पुस्तकें इंसान की सबसे अच्छी मित्र होती हैं। वहीं जब लेखक एक सफल पुस्तक रच देता है तो वह पुस्तक मात्र पुस्तक ना रहकर धरोहर बन जाती है। ऐसी ही एक पुस्तक है "टूटे पंखों से परवाज़ तक"। सुमित्रा महरोल द्वारा लिखित इस पुस्तक की हरिबाबू नरवार ने समीक्षा की है, प्रस्तुत है समीक्षा---
स्त्री, दलित और विकलांग जीवन की कटु सच्चाईयों पर आधारित बेहद रोचक, प्रेरक, और मार्मिक
आत्मकथा है
"टूटे पंखों से परवाज तक" (लेखिका सुमित्रा महरोल)
प्रमाणिक जीवन अनुभूतियों पर आधारित प्रस्तुत आत्मकथा ना केवल तीन तरह (विकलांग दलित स्त्री) की विषमताओं को झेल रही एक स्त्री का आत्म बयान है, बल्कि साहित्य के मानकों पर
भी पुस्तक को परखा जाए तो कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से भी प्रस्तुत पुस्तक बहुत प्रभावशाली बन पड़ी है|
पुस्तक की भाषा सहज, सरल, पात्र अनुकूल, प्रसंग अनुकूल है और शैली एकदम सधी हुई है..... ना रुदन का अतिरेक है ना विवशता का जरूरत से ज्यादा बयान.. ना भावसंकुलता ना भावातिरेक
पुस्तक में कई प्रसंग बहुत मर्मस्पर्शी बन पड़े हैं, विशेषकर लेखिका के बचपन के संघर्ष वाले प्रसंग |किस तरह उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के लिए, दो कदम भी चल सकने के लिए संघर्ष करना पड़ता था!.. कालांतर में परिजनों द्वारा फिल्म देखने के लिए जाते समय उन्हें रास्ते पर ही छोड़ दिए जाने वाला प्रसंग... स्कूल मे सहपाठियों द्वारा ना केवल अकेला छोड़ दिया जाना अपितु धक्का मार कर गिरा कर भाग जाना.. अक्षमता को इंगित कर चिढ़ाना... ऐसे अनेक प्रसंग बेहद मार्मिक व ह्रदय स्पर्शी बन पड़े हैं .. स्कूल से छुट्टी के बाद स्कूल से घर तक पहुंच पाने का उनका संघर्ष पाठक को बहुत- द्रवित कर देता है, बाद में उच्चतर शिक्षा को जारी रखने के लिए उनका संघर्ष और उनकी जिजीविषा इस वर्ग के व्यक्तियों के लिए बहुत प्रेरक है
लेखक का भाषा कौशल देखिए
"माना के रेगिस्तान में भटके मुसाफिर को भोजन पानी मयस्सर हो पाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है, पर क्या इस तथ्य को जान लेने भर से उसकी भूख प्यास मिट जाएगी, भूख प्यास तो समय के साथ बढ़ती ही जाएगी और तृप्त हो जाने के बाद ही मिटेगी.. ऐसे ही प्रेम, सरोकार और संवाद मन की भूख है. "
" ऐसा प्रतीत होता है कांच की एक बारीक दीवार मेरे और उनके बीच आ खड़ी हुई है, जो मुझे उनसे और उन्हें मुझसे जुड़ने नहीं देती"
पुस्तक को द मर्जिनलाइज्ड के संजीव चंदन और अरुण जी ने प्रकाशित किया है।
प्रकाशन से ही पूर्व ही यह आत्मकथा बहुत चर्चित थी, जिसका मुख्य कारण था, कि किस तरह एक मासूम बच्ची जो मात्र एक बर्ष से भी कम की अवस्था में पोलियो ग्रस्त हो जाती है, लेकिन फिर भी वो अपने हौसले बुलंद कर फर्श से अर्श तक पहुंचती है, ये कोई फिल्मी कहानी नहीं... लेखिका (सुमित्रा महरोल) खुद इसका जीगता जागता उदाहरण है।
मैंने इस आत्मकथा के कुछ अंश .....
1.मेरी संघर्ष गाथा और
2 हाशिए का त्रास काफ़ी पहले पढ़े थे,
और तभी से पुस्तक "टूटे पंखों से परवाज तक " के प्रकाशित होने का इंतजार कर रहा था, जो आज पूरा हुआ।
जो कांटों के पथ पर आया,
जीने का अधिकार उसी को।
Hard work never goes unrewarded......
बचपन में ही मात्र एक बर्ष से भी कम की उम्र में पोलियो ग्रस्त हो जाने पर भी लेखिका (सुमित्रा महरोल) ने स्थितियों से समझौता करने की बजाय संघर्ष का, कर्मठता का, लगन का और जिंदादिली का रास्ता चुना.....
आपकी चेतना सिर्फ अपने तक ही सीमित नहीं थी आपने अपनी वृद्ध दादी के दुख सुख से भी पूरे सरोकार रखे..! समय-समय पर उनका साथ दिया, उनसे सहयोग किया, चाहे वह आंख के ऑपरेशन वाला प्रसंग हो और चाहे उनकी पेंशन वाला प्रसंग!
विवाह के बाद अपने ससुराल के लोगों को भी स्नेह सम्मान देने में कोई कमी नहीं रखी उनको अपने साथ लेकर चली!
स्त्री, दलित, विकलांगता सभी से आप लड़ी और न सिर्फ हुई सफल हुई, बल्कि एक उदाहरण पेश करके दिखा दिया कि व्यक्ति ठान ले तो क्या कुछ नहीं कर सकता...
आपने न सिर्फ अपना दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने का सपना पूरा किया बल्कि दलित स्त्री और विकलांग व्यक्ति के जीवन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपनी लेखनी के माध्यम से इस वर्ग की दशा को भी समाज के सामने रखने की पुरजोर कोशिश की है..
आपने भारत भ्रमण के साथ साथ इंग्लैंड तक का सफर भी तय किया..
तथाकथित शिक्षित शहरी समाज आज भी दलितों के प्रति कैसी दोयम सोच रखता है और कैसा व्यवहार करता है इसका बड़ा सटीक वर्णन इस पुस्तक में देखने को मिलता है
शहरों में शोषण का रूप बदल गया है, प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता किंतु चोट उतनी ही गहरी करता है दलितों के मनोबल को तोड़ने की. उन्हें नीचा दिखाने का एक मौका छोड़ा नहीं जाता
विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से दलित उत्पीड़न के इस रूप को भी आपने बड़ी खूबसूरती से रेखांकित किया है
शिक्षा और आपकी प्रेरणा के फलीभूत आप को बेहतरीन, अमूल्य तोहफा भी मिला, जो एक मां के लिए अमूल्य है, बेशकीमती है, इससे बढ़कर अन्य कुछ हो ही नहीं सकता.... और वह है __--
आपके दोनों बच्चों का सफल IITian होना... अति प्रतिष्ठित आईआईटी दिल्ली जैसे संस्थान में प्रवेश पाने में कामयाबी हासिल करना! ये आपकी एक अन्य बेशकीमती उपलब्धि है।
आपने इस सबके लिए बाबा साहब के दिखाए हुए रास्ते अर्थात शिक्षा को उत्तरदाई ठहराया है... पुस्तकों को ही आपने पितु मात, सहायक, स्वामी, सखा माना है
मैं जो हूं साहित्य की बदौलत हूं...लेखक का साफ संदेश शिक्षा की और इशारा करना है और और जनमानस को शिक्षा के लिए प्रेरित करना है।
इस प्रकार
"टूटे पंखों से परवाज तक"
बहुत ही रोचक, संघर्ष से भरी हुई, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कभी हार न मानने वाली, दृढ़ इच्छाशक्ति वाली और बहुत ही प्रेरक सच्चाई पर आधारित पुस्तक है
जो वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के लिए भी प्रेरणादायक और मील का पत्थर साबित होगी।
पुस्तक की सफलता के लिए अनंत शुभकामनाओं सहित।
समीक्षक:-
हरिबाबू नरवार,
उत्पादन विभाग, मथुरा रिफाइनरी, मथुरा।
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