13 October 2020 10:04 PM
-रोशन बाफना
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। पीबीएम के निविदाकर्मियों की सैलरी का मामला अब भी लंबित है। आर के मानव संस्थान द्वारा अप्रेल माह के बाद की सैलरी ना देने से इन अल्प वेतनभोगी कर्मचारियों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। हालांकि ख़बरमंडी न्यूज़ द्वारा लगातार मामला उजागर करने पर कुछ दिन पहले आर के मानव संस्थान ने एक से दो माह की सैलरी कुछ कर्मचारियों को दी थी। लेकिन इसके बाद फिर वही ढ़ाक के तीन पात वाली स्थिति है। करीब 6 हजार रूपए की मासिक तनख्वाह पर काम करने वाले ये कंप्यूटर ऑपरेटर व नर्सिंग आदि भारी समस्या का सामना कर रहे हैं। बता दें कि इतने अल्प वेतन पर काम करने वाले कर्मचारियों के पास बचत के नाम पर कुछ नहीं होता। ऐसी स्थिति में 5-6 माह की सैलरी बकाया रखना अमानवीय कहा जा सकता है। अमानवीय इसलिए कि इतने अल्प वेतन में परिवार चलाने वालों के सामने सैलरी ना मिलने पर रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाता है।
पीबीएम की इस ठेकेदार कंपनी के खिलाफ बार बार शिकायतें मिल रही है। लेकिन पीड़ितों को न्याय दिलाने की जगह संबंधित प्रशासन चैन की नींद सो रहा है। हालांकि हाल ही में हुए नये ठेके से आर के मानव संस्थान आउट हो गया। सूत्रों के मुताबिक इसके बाद संस्थान ने नई चाल चलते हुए कानूनी दांव-पेंच चल दिया है। ऐसे में अल्पवेतन भोगी कर्मचारियों का परिवार विकट आर्थिक संकट में है। बता दें कि ठेके की शर्तों के अनुसार बिल पास ना होने की स्थिति में भी ठेकेदार द्वारा निविदाकर्मियों का वेतन भुगतना किया जाना अनिवार्य है। बावजूद इसके ठेकेदार स्वयं को असक्षम बताते हुए गरीबों को संकट में डाल रहा है। वहीं दूसरी ओर ठेकेदार का कहना है कि उसे सोसायटी द्वारा लंबे समय से पेमेंट नहीं किया जा रहा। ऐसे में वह पैसा कहां से लाएगा। हालांकि सूत्रों का दावा है कि ठेकेदार असक्षम नहीं है, बस सैलरी अटका रहा है। वह चाहे तो सैलरी चुकाना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।
सूत्रों ने तो दावा यहां तक किया है कि ठेकेदार का हिसाब ही साफ सुथरा नहीं रहता। पीएफ के पैसे में भी गड़बड़झाले के आरोप लगातार आर के मानव संस्थान पर लगते रहे हैं। पूर्व में भी ख़बरमंडी ने पीएफ के एक पुराने गड़बड़झाले का सबूत छापा था। वर्तमान टेंडर को लेकर भी पीएफ का गड़बड़झाला सामने आया है। कर्मचारियों के अनुसार 26 माह के टेंडर में केवल 10-12 माह का पीएफ ही जमा करवाया गया है। जबकि 12-14 माह का पीएफ बकाया बताया जा रहा है। कर्मचारियों के अनुसार ठेकेदार द्वारा पीएफ भी बड़ी चालाकी से जमा करवाया जाता है। वह बीच बीच में कहीं कहीं एक दो माह का पीएफ जमा करवाया है, जबकि पुराना पीएफ बकाया पड़ा रहता है। बता दें कि पीएफ कर्मचारी का हक है जो जरूरत के समय उसकी जमा पूंजी के रूप में उसे सहारा देता है। इस पूरे मामले में पीबीएम अधीक्षक से लेकर हर जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी कठघरे में है। अल्पवेतन भोगियों की इस दुर्दशा पर प्रशासन की चुप्पी सवाल खड़े करती है। ख़बरमंडी न्यूज़ के अभियान से पीड़ित कर्मचारियों को कुछ राहत मिली है। लेकिन प्रशासन की चुप्पी अब आमजन को खलने लगी है। अगर प्रशासन निष्पक्ष रूप से कदम उठाए तो इन कर्मचारियों को न्याय मिल सकता है।
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