15 June 2022 12:04 AM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। तेरापंथ के आचार्य श्री महाश्रमण अपनी धवल सेना के साथ गंगाशहर क्षेत्र के पावन प्रवास पर है। उनके दर्शन को लेकर श्रद्धालुओं में भारी उत्साह है। नवनियुक्त साध्वी प्रमुखा श्री विश्रुत विभा भी गुरुदेव के साथ गंगाशहर क्षेत्र में प्रवास कर रही हैं। वें गंगाशहर स्थित सेवा केंद्र में विराज रही हैं। शासन माता कनकप्रभा के देवलोकगमन के पश्चात एक माह पूर्व ही आचार्य श्री महाश्रमण ने उन्हें साध्वी प्रमुखा का पदभार सौंपा है। नवनियुक्त साध्वी प्रमुखा के दर्शन को लेकर समाज उत्साही है। उन्हें जानने की जिज्ञासा से समाज सराबोर है, हो भी क्यों नहीं। 262 वर्ष पुराने तेरापंथ धर्म संघ की नवम साध्वी प्रमुखा का मंगल प्रवेश जो हुआ है। संघ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने साध्वी प्रमुखा के पद का सृजन किया था। सरदाराजी प्रथम साध्वी प्रमुखा बनाई गईं। आठवीं साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा थीं। पचास वर्ष के दायित्व निर्वहन के बाद हाल ही में उनका देवलोकगमन हुआ।
ख़बरमंडी न्यूज़ के हैड रोशन बाफना ने आज साध्वी प्रमुखा श्री विश्रुत विभा से कुछ विशेष बिन्दुओं पर बातचीत की। सामान्य परिचय के साथ प्रस्तुत है उसी बातचीत के कुछ अंश---
परिचय:- 27 नवंबर 1957 को तेरापंथ की राजधानी लाडनूं के मोदी परिवार में जन्म हुआ। बारहवीं की परीक्षा पास कर पारमार्थिक शिक्षण संस्थान में प्रविष्ट हुईं। वहां नाम मिला मुमुक्षु सविता। यहां लगभग छह वर्ष तक अध्ययन किया। 1980 में समण श्रेणी के प्रवर्तन के बाद 19 नवंबर को प्रथम बार छह मुमुक्षु बहनों को दीक्षित किया गया। इनमें एक नाम मुमुक्षु सविता का था। आचार्य तुलसी ने नया नाम समणी स्थितप्रज्ञा रखा। यहां से शुरू हुई यात्रा मुख्य रूप से प्रथम समणी नियोजिका, मुख्य नियोजिका के पदभार तक पहुंची। जो अब साध्वी प्रमुखा के पदभार तक पहुंच चुकी है। 18 अक्टूबर 1992 को आचार्य तुलसी ने साध्वी दीक्षा प्रदान की, नाम दिया साध्वी विश्रुतविभा।
साध्वी प्रमुखा श्री समणी काल में धर्म प्रभावना के उद्देश्य से अमेरिका, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली, इंग्लैंड, बैंकॉक, कनाडा, होलैंड, हॉन्गकॉन्ग सहित कई देशों की यात्राएं कर चुकी हैं। आगम अध्ययन व साहित्य संपादन में विशेष कार्य किए। वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण के सानिध्य में विशाल साध्वी समुदाय को संभाल रही हैं।
-इंटरव्यू के संपादित अंश सरल भाषा में:--
सवाल:- किस घटना अथवा कारण से वैराग्य भाव जगा और आप इस मार्ग पर प्रशस्त हुईं?
जवाब:- आठ भाईयों व पांच बहनों के परिवार में कोई दीक्षित नहीं था। ना ही कुछ ऐसा घटित हुआ, जिससे वैराग्य पैदा हो। संसारपक्षीय मौसी दीक्षा में थे। उनका नाम साध्वी चंद्रलेखा जी था। कुछ पूर्व जन्म के संस्कार थे, फिर उनका साध्वी जीवन देखकर प्रेरणा मिली और यह मार्ग चुना।
सवाल:- मुमुक्षु से साध्वी प्रमुखा तक का सफर तय किया। क्या कुछ चुनौतियां रही, कितने संघर्ष रहे?
जवाब:- संघर्ष अधिक नहीं होता। आचार्य का वरदहस्त होता है। उसी से ऊर्जा मिलती है। सकारात्मक सोच के साथ आचार्य के आदेशानुसार धर्मसंघ के कार्य करती रही।
सवाल:- क्या मंत्र आदि प्रभावी होते हैं? अनुभूति के आधार पर क्या कहेंगे?
जवाब:- मंत्र साधना से आंतरिक शक्तियों का जागरण संभव है। मंत्र साधना के पीछे भौतिक लक्ष्य नहीं होना चाहिए। वशीकरण अथवा इस तरह के उद्देश्यों के लिए मंत्र साधना का प्रयोग नहीं करना चाहिए। आध्यात्मिक दृष्टि से मंत्र किए जाएं।
सवाल:- महिलाएं अब पुरुषों के बराबर आना चाहती हैं बल्कि पुरुषों से आगे भी निकल रही हैं। महत्वाकांक्षी महिलाओं के लिए सुखी जीवन का क्या सुझाव है?
जवाब:- महिलाएं आगे बढ़ें मगर मूल को ना भूलें। तेरापंथ धर्मसंघ में तो इसी वजह से तेरापंथ महिला मंडल की स्थापना की गई। ताकि महिलाएं जड़ों को ना भूलें। परिवार व सामुहिक जीवन का महत्व ना भूलें।
सवाल:- नैतिक पतन बढ़ रहा है। नैतिकता बची रहे, इसके लिए क्या करें?
जवाब:- अणुव्रत की पालना से नैतिकता की रक्षा की जा सकती है। आचार्य श्री महाश्रमण अहिंसा यात्रा के माध्यम से भी नैतिकता की शिक्षा दे रहे हैं। हम सामने देवी की प्रतिमा रखें या ना रखें मगर नैतिकता की देवी की प्रतिमा जरूर रखें।
RELATED ARTICLES