28 July 2025 04:13 PM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। अहिंसा, त्याग व तपस्या के लिए विश्व विख्यात जैन समाज में इन दिनों त्याग और तप की अनूठी धारा प्रवाहित है। चातुर्मास का यह समय जैन अनुयायियों के लिए त्याग व तप का विशेष समय माना जाता है। बीकानेर में भी तप की गंगा में लोग निर्मल हो रहे हैं। छोटे छोटे बालक बालिकाओं से लेकर बुजुर्गों तक सभी तप में लीन हैं।
इसी कड़ी में गंगाशहर के लाभचंद आंचलिया पुत्र स्वर्गीय जेठमल आंचलिया की तपस्या चर्चा में है। लाभचंद ने 51 की तपस्या की है। वह मंगलवार को 51 के तप का पारणा करेंगे।
-क्या होती है जैन तपस्या: जैन परंपरा में तपस्या करना आसान नहीं होता। एक दिन की तपस्या यानी उपवास करना भी कठिन है। एक उपवास भी करीब 36 घंटे की अवधि का होता है। जैसे अगर आपको उपवास यानी एक दिन की तपस्या भी करनी है तो रात 12 बजे से अन्न जल का पूर्ण त्याग करना होगा। इसके बाद सूर्योदय के 48 मिनट बाद सूर्यास्त से पूर्व तक जल ले सकते हैं। यह जल भी विशिष्ट निर्दोष जल होता है। फिर सूर्यास्त के बाद जल का भी त्याग हो जाएगा। इसके बाद अगली सुबह सूर्योदय के 48 मिनट बाद ही जल लिया जा सकता है।
यह एक उपवास की प्रक्रिया होती है। ज़रा सोचिए कि लाभचंद आंचलिया ने 51 दिनों तक यही क्रम कैसे चलाया होगा। 51 दिनों तक अन्न का एक दाना नहीं खाया। केवल मात्र सूर्य रहने तक जल लिया जा सकता है।
-पूर्व में भी लगा चुके हैं तपस्या की झड़ी: लाभचंद आंचलिया की पुत्री इंपल के अनुसार उनके पिता ने पहली बार तपस्या नहीं की है। इससे पहले 1 से 19 तक की तपस्या की लड़ी कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त 27, 28, 29, 31 व 41 की तपस्या भी अलग अलग समय में कर चुके हैं। बता दें कि लड़ी का मतलब होता है अलग अलग समय में 1 से 19 तक के सभी अंकों की संख्या अनुसार उतने दिनों की अलग अलग तपस्या करना।
-परिवार के सदस्य हैं जैन तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित: लाभचंद आंचलिया के दो छोटे भाई जैन तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षित संत हैं। उनका दीक्षा नाम मुनि श्री सुमति कुमार जी व मुनि श्री रश्मि कुमार जी है। इसके अतिरिक्त मुनिश्री आदित्य कुमार जी भी उनके ससुराल पक्ष से संबंध रखते हैं।माता किरण देवी श्राविका गौरव सम्मान से सुशोभित हैं।
उल्लेखनीय है कि लाभचंद आंचलिया की धर्मपत्नी मंजू देवी, पुत्र अश्विन व पुत्रियां एकता, कोमल व इंपल सहित संपूर्ण परिवार व समाज तप अनुमोदना कर रहा है।
परिवार के अनुसार यह तपस्या उन्होंने आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल आशीर्वाद व गंगाशहर में विराजित साधु-साध्वियों की प्रेरणा से संपन्न की है।
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