22 September 2020 12:16 AM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 अब महज कागजी शेर रह गया है। जिस नियम की बदौलत सच उजागर करके लोकतंत्र मजबूत होता है, उसी नियम के साथ अब लोकसेवक खेलने लगे हैं। मामला भ्रूण हत्या जैसे गंभीर अपराध की सूचना से जुड़ा है। दरअसल, बीकानेर से एडवोकेट अनिल सोनी ने जनवरी 2020 में बीकानेर संभाग आईजी के लोक सूचना अधिकारी से भ्रूण हत्या के मामलों से जुड़ी सूचना मांगी थी।
आरटीआई के तहत मांगी गई इस सूचना को संभाग कार्यालय से चुरू, बीकानेर, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिला पुलिस के लोक सूचना अधिकारी को प्रेषित कर दिया गया। संभाग स्तर पर मांगी गई सूचना के तहत जिला स्तर का लोक सूचना अधिकारी संभाग के अधिकारी का सहायक अधिकारी होता है। संभाग अधिकारी के आदेश पर करीब 7 माह बाद बीकानेर पुलिस ने यह सूचना उपलब्ध करवा दी, लेकिन इसी सूचना के आवेदन को श्रीगंगानगर पुलिस के लोक सूचना अधिकारी ने नियमों का हवाला देते हुए खारिज कर दिया।
वहीं चुरू व हनुमानगढ़ पुलिस के लोक सूचना अधिकारी ने आठ माह बीत जाने पर भी कोई जवाब तक नहीं दिया है। एडवोकेट अनिल सोनी का कहना है कि संभाग के इन तीनों जिलों की पुलिस सूचना देना ही नहीं चाहती। जो सूचना बीकानेर पुलिस ने दे दी, उन्हीं भ्रूण हत्या के मामलों की सूचना देने से श्रीगंगानगर पुलिस ने पल्ला झाड़ लिया। जबकि भ्रूण हत्या जैसे संवेदनशील मामलों की सूचना देकर पारदर्शिता रखना पुलिस का कर्त्तव्य है।
पुलिस द्वारा इस तरह से सूचना छुपाना उसे कठघरे में खड़ा करता है। वहीं चुरू व हनुमानगढ़ पुलिस ने तो जवाब देना ही उचित नहीं समझा। एडवोकेट अनिल सोनी ने मामले में संभाग पुलिस के प्रथम अपीलीय अधिकारी पुलिस महानिरीक्षक को अपील की है। उल्लेखनीय है कि भ्रूण हत्या के मामलों में पुलिस न्याय दिलाने में फिसड्डी साबित होती है। इन मामलों में सिवाय खानापूर्ति के पुलिस कुछ नहीं करती, जबकि भ्रूण हत्या सामान्य तौर पर होने वाली हत्याओं से भी गंभीर मसला है। आरोप है कि भ्रूण हत्या से जुड़े मामलों में पुलिस अपनी जांच का सच उजागर होने नहीं देना चाहती, इसी वजह से सूचना नहीं दे रही।
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