28 June 2022 04:47 PM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। गंगाशहर थाना क्षेत्र में 2009 में हुई मोबाइल छीना झपटी की वारदात को लेकर संबंधित अनुसंधान अधिकारी व संबंधित थानाधिकारी की गंभीर लापरवाही उजागर हुई है। पुलिस द्वारा लंबे समय तक न्यायालय को गुमराह करने की बात सामने आई है। तो वहीं साक्ष्य मिटाने की आशंका भी जताई जा रही है। मामले में न्यायालय ने फटकार लगाते हुए गंगाशहर थानाधिकारी व अनुसंधान अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु आईजी बीकानेर को निर्देशित किया है। न्यायालय ने आदेश में कहा है कि "उक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर पूर्व अनुसंधान अधिकारी द्वारा व वर्तमान अनुसंधान अधिकारी द्वारा प्रकरण में अत्यधिक लापरवाहीपूर्वक अनुसंधान करते हुए गंभीर अनियमितता कारित किया जाना व गंभीर प्रकरण में भी आरोपीगण की तलाश सम्यक रूप से नहीं किया जाना प्रकट होता है। संबंधित थानाधिकारी द्वारा भी इस संबंध में अत्यधिक लापरवाही से कार्य करते हुए लंबी अवधि तक इस प्रकरण में न्यायालय के निर्देशानुसार अनुसंधान नहीं करवाकर गंभीर अनियमितता कारित किया जाना प्रकट होता है, जिसके संबंध में सामान्य नियम (न्यायिक एवं दाण्डिक), 2018 के आदेश 35 नियम 6 के प्रावधानुसार संबंधित थानाधिकारी व संबंधित अनुसंधान अधिकारी द्वारा की गई उक्त गंभीर अनियमितता के संबंध में अनुशासनात्मक कार्यवाही किया जाना उचित है। अतः इस संबंध में पुलिस महानिरीक्षक बीकानेर को पत्र प्रेषित कर निर्देश दिए जाते हैं कि वह संबंधित कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही कर न्यायालय को तीन माह के भीतर सूचित करें तथा पत्र की प्रति पुलिस महानिदेशक जयपुर को इस निर्देश के साथ प्रेषित हो कि वह न्यायालय के आदेश की पालना सुनिश्चित करावे।"
ये था मामला:- वर्ष 2009 में ओमप्रकाश सुथार अपने तीन दोस्तों के साथ पैदल मोहता सराय वाले रास्ते से गुजर रहा था। इसी दौरान मोटरसाइकिल पर सवार होकर आए तीन बदमाशों ने हथियार के दम पर ओमप्रकाश व दो अन्य दोस्तों के मोबाइल लूट लिए। तत्कालीन गंगाशहर थानाधिकारी ने छीना झपटी की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच सब इंस्पेक्टर गोपाल सिंह को सौंपी।
पुलिस ने आईएमआई नंबर के आधार पर लूट के बाद मोबाइल में उपयोग की गई सिम का नंबर निकलवाया। एक माह की कॉल डिटेल भी निकलवाई मगर न्यायालय को 12 साल तक गुमराह किया जाता रहा। 6 जनवरी 2022 को गंगाशहर पुलिस ने न्यायालय को अंतिम रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया कि "पत्रावली में कॉल डिटेल संलग्न नहीं है। वहीं एक वर्ष से अधिक पुरानी कॉल डिटेल निकलवाया जाना अब संभव नहीं है। पुलिस ने कहा कि प्रकरण 2009 में दर्ज हुआ। न्यायालय ने 2015 में सीडीआर के आधार पर अनुसंधान करने का आदेश फरमाया मगर मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी के पास एक वर्ष से अधिक पुरानी कॉल डिटेल उपलब्ध नहीं होती। ऐसे में सीडीआर के आधार पर अनुसंधान किया जाना संभव नहीं है।"
न्यायालय के आदेशानुसार 2009 में पुलिस द्वारा केस डायरी में स्पष्ट रूप से यह उल्लेखित किया गया है कि चोरी हुए मोबाइल आईएमआई नंबर 358824002623511 की कॉल डिटेल प्राप्त होने पर 25-10-2009 से 5-11-2009 तक इस मोबाइल में सिम नंबर 8058956127 का उपयोग हुआ है। मगर सिम धारक का नाम पता अंकित नहीं है। सिम धारक का नाम पता निकलवाने बाबत एसपी साहब को जरिए पत्र निवेदन किया गया है। नाम पता प्राप्त होने पर अग्रिम कार्यवाही होगी।"
सवाल यह है कि केस डायरी में कॉल डिटेल प्राप्त किए जाने का स्पष्ट उल्लेख है तो फिर पत्रावली से कॉल डिटेल कहां गई। चौंकाने वाली बात यह है कि सिम नंबर आने के बाद भी मुल्जिम नामजद नहीं किए गए। जबकि मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा आईडी वेरिफिकेशन किए जाने के बाद ही कोई सिम एक्टिवेट हो सकती है। पुलिस ने न्यायालय में भी कॉल डिटेल पेश नहीं की। यहां तक कि एसपी को लिखा पत्र भी गायब है। सवाल यह है कि आखिर पुलिस ने इस मामले में इतनी बड़ी कोताही कैसे बरती?? दस्तावेजी साक्ष्यों का इधर उधर अथवा गायब होना व न्यायालय के आदेश के बावजूद समुचित अनुसंधान ना किया जाना सवाल खड़े करता है। न्यायालय ने पत्रावली पुनः थानाधिकारी को लौटाते हुए अनुसंधान के आदेश फरमाए हैं।
उल्लेखनीय है कि परिवादी ओमप्रकाश सुथार की तरफ से न्यायालय में पैरवी एडवोकेट जयदीप शर्मा व शैलेन्द्र खरे कर रहे हैं।
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