02 February 2021 04:54 PM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। प्रदेश में एसीबी ने सबसे बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते हुए आईपीएस मनीष अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया है। हाइवे का निर्माण करने वाली कंपनी के अधिकारियों को डरा धमकाकर लाखों की रिश्वत लेने के मामले में आईपीएस अग्रवाल को गिरफ्तार किया गया है। अब अभिरक्षा के 24 घंटों के अंदर अग्रवाल को सस्पेंड भी कर दिया जाएगा।
ये था मामला:
दौसा में बन रहे हाइवे की ठेकेदार कंपनी के अधिकारियों ने शिकायत की थी कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उन्हें डरा धमकाकर पैसों की वसूली की जा रही है। इस पर एसीबी ने जांच करते हुए दौसा एसडीएम पुष्कर मित्तल को पांच लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों दबोचा गया। वहीं एसडीएम पिंकी मीणा दस लाख रूपयों की मांग करते हुए धरी गईं। दोनों अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद आगे से आगे कड़ी जुड़ती गई और 13 जनवरी को इस मामले में दलाल नीरज मीणा को गिरफ्तार कर लिया गया। नीरज की गिरफ्तारी के साथ ही आईपीएस मनीष अग्रवाल के इस पूरे प्रकरण में लिप्त होने की बात साफ हो गई। जिसके बाद एसीबी ने अब आईपीएस मनीष अग्रवाल को गिरफ्तार किया।
बताया जा रहा है कि दलाल नीरज मीणा ने कंपनी प्रतिनिधियों से चार लाख रूपए की मंथली तय कर ली। वहीं केस रफा दफा करने की एवज में 10 लाख रूपए की मांग की गई। वहीं सात महीने तक चार लाख रूपए की मंथली वसूली गई।
उल्लेखनीय है कि एसपी मनीष अग्रवाल 2010 बैच के जम्मू कश्मीर कैडर के अफसर थे। उन्होंने राजस्थान कैडर की आईपीएस ममता गुप्ता से शादी की। इसी शादी के आधार पर उन्हें राजस्थान कैडर दिया गया। जिस समय कैडर बदला उस समय वह एडीशनल एसपी लेह के पद पर तैनात थे। लेकिन कैडर बदला तो आईपीएस से तलाक भी हो गया। इसके बाद मनीष ने दूसरी शादी कर ली।
2018 में एसपी के रूप में मनीष की पहली पोस्टिंग बाड़मेर में हुई। यहां पदभार ग्रहण ही विवादों से घिर गए। सिर्फ तीन माह बाद ही उन्हें एपीओ कर दिया गया। दूसरी बार हाल ही में 6 जुलाई 2020 को उन्हें दौसा एसपी लगाया गया। यहां भी विवादों से घिरे रहे। दुष्कर्म के एक मामले में पच्चीस लाख की रिश्वत मांगने का आरोप भी लगा। इसकी शिकायत सीएम तक गई तो मुख्यालय विजिलेंस विंग को मामले की जांच दी गई।
विवादों का कारवां यहीं नहीं थमा, आचार संहिता के दौरान थानाधिकारी बदल डाले। विवाद गहराया तो रेंज आईजी ने तबादले निरस्त कर दिए, इसके बाद भी एसपी ने तबादले निरस्त नहीं किए। आखिरकार तत्कालीन डीजीपी भूपेंद्र सिंह यादव को दखल देना पड़ा।
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