07 September 2022 12:45 PM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। करीब नौ साल से इन्श्योरेन्स होल्डर का क्लेम देने से इंकार कर रही बीमा कंपनी को अब राजस्थान उपभोक्ता आयोग की सर्किट बेंच ने भी झटका दे दिया है। राजस्थान उपभोक्ता आयोग की बेंच ने स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील को खारिज करते हुए उपभोक्ता को इंश्योरेंस क्लेम देने के जिला उपभोक्ता आयोग, हनुमानगढ़ के आदेश को कायम रखा है। मामला 2013 का है। जिसमें हनुमानगढ़ निवासी कमला देवी ने स्टार हैल्थ के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में दावा किया था। परिवादिया का मेदांता में इलाज हुआ था। कंपनी ने यह कहते हुए क्लेम देने से इंकार कर दिया था कि पॉलिसी जोधपुर में हुई मगर परिवादिया का इलाज मेदांता दिल्ली में हुआ। वहीं उपभोक्ता ने पॉलिसी लेते वक्त पूर्व की बीमारियां छिपाई। इस मामले में जिला उपभोक्ता आयोग हनुमानगढ़ ने सुनवाई के बाद परिवादिया के हक में फैसला सुनाते हुए बीमा कंपनी को इलाज व परिवाद का खर्चा देने का आदेश दिया। जिस पर कंपनी अपील में चली गई। मामले में राजस्थान उपभोक्ता आयोग सर्किट बेंच बीकानेर की सदस्य उर्मिला वर्मा व लियाकत अली ने सुनवाई करते हुए विस्तृत फैसला सुनाया है।
ये है विस्तृत आदेश:
अपीलार्थी/ प्रत्यर्थी स्टार हैल्थ एण्ड एलाईड इंश्योरेंस कं. लि. की ओर से यह अपील विद्वान जिला उपभोक्ता मंच (वर्तमान में जिला उपभोक्ता आयोग ) हनुमानगढ़ द्वारा परिवाद सं. 26/ 2013 कमला देवी बनाम स्टार हैल्थ एण्ड एलाईड इंश्योरेंस कं. लि. में पारित निर्णय दिनांक 03.02.2014 के विरूद्ध इस आयोग के समक्ष पेश की गयी है, जिसके द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार किया गया है।
उभयपक्षों को सुना व पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादिया की ओर से सीनियर सिटीजन कारपेट इंश्योरेंस पॉलिसी ली गई है, जो 29.03.2012 से 28.03.2013 तक प्रभावी थी। इस पॉलिसी का बीमित मूल्य 5 लाख रू. है, जिस हेतु 19.854 /- का प्रीमियम अदा किया गया है। परिवादिया इस पॉलिसी के प्रभावी रहतें हुए मेदान्ता हॉस्पिटल में भर्ती रही, उसका इलाज 01.11.2012 तक चला।
विद्वान अधिवक्ता प्रार्थी की यह आपत्ति रही है कि यह पॉलिसी, जोधपुर कार्यालय से जारी है एवं परिवादिया का इलाज मेदान्ता हॉस्पिटल दिल्ली में हुआ है, अतः विद्वान जिला मंच को इस प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं था परन्तु अपने जवाब में अपीलार्थी ने उपरोक्त तथ्य अंकित नहीं किये हैं, केवल परिवादी का धारा-2 (A) कन्ज्यूम प्रोटेक्शन एक्ट के तहत उपभोक्ता नहीं होना बताया है परंतु वो उपभोक्ता क्यों नहीं है, इसको स्पष्ट नहीं किया है। ऐसी परिस्थिति में उनकी यह आपत्ति स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। अपीलार्थी ने अपील में यह अंकित किया है कि मेदान्ता हॉस्पिटल से उनको प्री ऑथोराइजेशन फॉर्म प्राप्त हुआ जिसमें परिवादिया की बीमारी के सम्बन्ध में निम्न प्रकार से उल्लेख किया गया है : DM- PRESENT, Heart Disease present, Osteo Arthrities / RA
chambers, Restrictive - MIP, increase LVEDP, Borderline RV systolic dysfunction.
इस प्रकार उपरोक्त फॉर्म को देखने से यह स्पष्ट है कि परिवादिया के बीमा पॉलिसी लेने से पूर्व उक्त बीमारियाँ थी परन्तु उसके द्वारा पॉलिसी लेते समय प्रपोजल फॉर्म में नहीं बताया यानी पूर्व बीमारियों को छिपाया ।
जबकि बीमा पॉलिसी के बीमा पॉलिसी में अंकित अपवाद की शर्त 1 में यह उल्लेख है कि Pre-existing diseases की स्थिति में उक्त पॉलिसी लेने के Pre-existing diseases पॉलिसी में कवर नहीं होती। इस प्रकार विद्वान जिला मंच ने परिवादिया का परिवाद स्वीकार कर त्रुटि की है। जबकि विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रपोजल फॉर्म करते समय कमला देवी के आर्थराइटिस थी, यह बता दिया था तत्पश्चात सुगर की बीमारी भी अलग से पत्र देकर बता दिया था। अपीलार्थी ने प्री-ऑथोराईजेशन फॉर्म की प्रति प्रस्तुत नहीं की है, अतः अपीलार्थी की अपील खारिज करने की प्रार्थना की है।
इस सम्बन्ध में पत्रावली का अवलोकन करें तो परिवादिया ने अपने प्रपोजल फॉर्म, जिसकी प्रति दौराने अपील बहस, अपीलार्थी ने प्रस्तुत की है, में आर्थराइटिस की बीमारी होने का उल्लेख किया है तथा एक पत्र लिख कर सुगर की बीमारी भी पिछले काफी वर्षों से होना बताया है। सुगर की बीमारी होने का तथ्य, अपीलार्थी कम्पनी को बता दिया गया था। इस बात को उन्होंने स्वीकार किया है एवं पत्रावली पर B7 दस्तावेज पेश किया है उसमें ऊपर सुगर की बीमारी का उल्लेख 26.02.2013 के रिन्यूवल नोटिस में है, यानी उक्त पॉलिसी की अवधि के दरम्यान ही परिवादिया के सुगर थी, इस तथ्य को उजागर किया जाना साबित है। अपीलार्थी कंपनी ने यह साबित नहीं किया है कि पॉलिसी जारी रहने की अवधि के दौरान, उनको परिवादिया के सुगर की बीमारी का तथ्य नहीं बताया गया बल्कि बाद में बताया गया।
अपीलार्थी ने परिवादिया द्वारा मेदान्ता हॉस्पिटल में जो इलाज कराया वहां से प्री-ऑथोराईजेशन लेटर प्राप्त होना बताया है, परन्तु ऐसा कोई पत्र पत्रावली में प्रस्तुत नहीं किया है। जबकि परिवादिया का क्लेम हॉस्पिटल रिकॉर्ड के आधार पर Pre-existing diseases होना बताते हुए प्रदर्श A(4) के जरिये खारिज किया है, परन्तु मेदान्ता हॉस्पिटल से कमला देवी के इलाज की हिस्ट्री प्रस्तुत नहीं की है ना ही ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया है जिसमें यह अंकन हो कि परिवादिया पॉलिसी प्राप्त करने से पूर्व 9 माह से या अधिक समय से डिनायल लेटर में वर्णित बीमारियों से ग्रसित थी। इस प्रकार मेदान्ता हॉस्पिटल के जिस रिकॉर्ड के आधार पर परिवादिया के क्लेम को देने से इन्कार किया है, उस रिकॉर्ड को विद्वान जिला मंच के समक्ष या राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है। अतः उनका यह तर्क किं परिवादिया पॉलिसी लेने के पहले से R/C/O DIABETES, INTERSTITIAL LUNG DISEASE, DIABETIC NEUROPATHY AS EXISTING DISEASE WHICH WAS NOT DISCLOSED DURING THE POLICY INCEPTION से ग्रसित थी। इसके प्रतिकूल, परिवादिया ने पॉलिसी लेते समय उसके पिछले 12 महीनो में आर्थराइटिस थी व पिछले कॉफी वर्षों से वह सुगर की बीमारी से ग्रसित थी, इस तथ्य का उजागर करते हुए पॉलिसी प्राप्त की है। इस प्रकार उसने पॉलिसी प्राप्त करते समय पूर्व बीमारी के तथ्यों को छिपाया हो. यह प्रमाणित नहीं है। अपीलार्थी को मेदान्ता हॉस्पिटल के रिकॉर्ड से या उक्त हॉस्पिटल के चिकित्सक के प्रमाण पत्र या शपथ पत्र के जरिये यह साबित करना था कि परिवादिया के Pre-existing disease थी।
अतः उनका यह तर्क भी मानने योग्य नहीं है कि Pre-existing diseases के कारण पॉलिसी के प्रथम वर्ष में हॉस्पिटल में हुआ खर्चा देय नहीं है।
इस प्रकार बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिया का क्लेम अस्वीकार कर सेवा में त्रुटि की गई है। अतः विद्वान जिला मंच ने परिवादिया का परिवाद स्वीकार कर इलाज पर हुआ खर्चा व परिवाद व्यय दिलाए जाने में कोई त्रुटि नहीं की है व विद्वान जिला मंच का निर्णय पुष्ट किय जाने योग्य है।
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