10 February 2025 12:15 AM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। (पत्रकार रोशन बाफना) ये ठीक वैसा ही है जैसे किसी मां के बेटे पढ़ लिख लिए, सक्षम बन गए, कोई अफसर बन गया तो कोई विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री मगर घर में जाकर देखा तो मां अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्षरत थी। राजस्थान में राजस्थानी भाषा को मान्यता ना मिलना भी ठीक वैसा ही है। लंबे समय से मायड़ भाषा के लाडले अपनी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने से लेकर मान्यता व राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। राजस्थान मोट्यार परिषद् भी लंबे समय से यह मांग उठा रही है। परिषद् वे ज्ञापन की जगह ज्ञापन दिए, आंदोलन की जगह आंदोलन किए मगर आज तक कुछ मिला तो झूठा आश्वासन। रविवार को भी परिषद् बीकानेर दौरे पर रहे केंद्रीय कानून एवं विधि मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से मिले। मंत्री से भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर मान्यता दिलवाले की मांग की गई। इसके साथ ही राजस्थानी भाषा को राजभाषा का दर्जा देने की मांग भी की गई। अर्जुन राम ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार राजस्थानी भाषा को लेकर सकारात्मक है। राज्य सरकार नई शिक्षा नीति के तहत राजस्थानी भाषा को प्राथमिक शिक्षा में शामिल करने की कोशिश में है। प्रधानमंत्री का भी विजन यही है कि पूरे देश के विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा मिले। अर्जुन ने मांगे पूरी करवाने का आश्वासन दिया।
बता दें कि प्रदेशभर में इससे पहले भी विधायकों, सांसदों, मंत्रियों व मुख्यमंत्री तक यह मांग कई बार पहुंचाई जा चुकी है। भारत की ऐसी ऐसी बोलियों को मान्यता प्राप्त है, जिन्हें बोलने वाले ही कम है लेकिन राजस्थानी जैसी समृद्ध भाषा मान्यता के लिए तरस रही है। सवाल यह है कि राजस्थान के विधायक, सांसद, मंत्री व मुख्यमंत्री इस विषय को गंभीरता से ले भी रहे हैं या नहीं? केंद्र में भी राजस्थान अपना मजबूत प्रतिनिधित्व रखता है, इसके बावजूद मायड़ भाषा को अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान मोट्यार परिषद् ने अर्जुन राम से यह भी कहा कि आप कानून मंत्री हैं, इसलिए आप कानूनी अड़चनों का हल निकालकर इस मांग को पूरा करवाएं। प्रतिनिधि मंडल में डॉ नमामी शंकर आचार्य, राजेश चौधरी, रामवतार उपाध्याय, एड. हिमांशु टाक, प्रशांत जैन, कमल किशोर मारू, एड राजेश कड़वासरा, शुभकरण उपाध्याय, नखतू चंद, पप्पू सिंह आदि शामिल थे।
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