24 November 2024 12:31 AM
ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। (तीखी टिप्पणी : पत्रकार रोशन बाफना) यह जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों व नेताओं की उदासीनता का ही नतीजा है कि बीकानेर को आज तक वह मुकाम नहीं मिल पाया है जिसका वो हकदार है। सबकुछ है हमारे पास, उसके बावजूद हम पिछड़े हुए जिलों में शामिल हैं। वैसे तो प्रशासनिक व राजनैतिक उदासीनता ने बीकानेर को हर क्षेत्र में ही तबाह कर रखा है, लेकिन फिलहाल मुद्दा है बीकानेर में स्थित प्रदेश के एकमात्र आवासीय स्पोर्ट्स स्कूल का। आजादी से पहले बने रियासतकालीन सादुल स्पोर्ट्स स्कूल को राज्य सरकार ने 1982 में ही प्रदेश के एकमात्र आवासीय स्पोर्ट्स स्कूल का दर्जा दे दिया था लेकिन हालात यह है कि बीकानेर के इस गौरव को मुकम्मल व्यवस्थाएं दिलवाने के लिए दो खेल प्रेमियों को अनशन पर बैठना पड़ रहा है। चर्चित खिलाड़ी दानवीर सिंह भाटी व युवा फुटबॉलर भैरूरतन ओझा 18 नवंबर से अनशन पर हैं। शनिवार को दोनों की तबीयत बिगड़ी तो पुलिस उन्हें पीबीएम अस्पताल लेकर गई। दोनों को भर्ती करवाया, ड्रिप चढ़वाई। हालांकि देर रात दोनों वापिस अनशन स्थल पर भी लौट गए। उल्लेखनीय है कि हर किसी का मन पिघला। विभिन्न संस्थाएं, युवा, खिलाड़ी इस आंदोलन के समर्थन में आ रहे हैं लेकिन उतनी ही शर्मनाक बात यह है दिन रात आंदोलन कर रहे इन युवाओं को संभालने शिक्षा विभाग से अब तक कोई नहीं आया। शिक्षा विभाग के निदेशक बीकानेर से बाहर बताए जा रहे हैं। उन्होंने किसी भी माध्यम से अनशनकारियों से बात करना भी उचित नहीं समझा। हालांकि डिप्टी डायरेक्टर सहित अन्य अधिकारी यहीं पर हैं। शिक्षा मंत्री के ओएसडी का फोन आया बताते हैं। विभागीय अधिकारियों का यह नैतिक दायित्व तो बनता ही है कि वह अनशनकारियों की सुध लें। आसान नहीं है अनशन करना। दिन रात केवल मात्र जल पर रहना, वह भी छः दिनों से, अब सातवां दिन है। शिक्षा विभाग के इस रवैये से हर जगह विभाग की किरकिरी हो रही है।
-समझिए आख़िर क्यों जरूरी है मांगे मानना: जिस तरह पीबीएम अस्पताल बीकानेर का गौरव है उसी तरह सादुल स्पोर्ट्स स्कूल भी बीकानेर का गौरव है। राजस्थान में इसके अतिरिक्त कोई भी आवासीय स्पोर्ट्स स्कूल नहीं है। 71 बीघा में फैला यह स्पोर्ट्स स्कूल 12 खेलों के खिलाड़ियों की उम्मीद है। यहां से निकले खिलाड़ियों ने देशभर में बीकानेर व राजस्थान का नाम रोशन किया है। यहां पर 12 खेलों में एडमिशन मिलता है। सभी 12 खेलों के अलग अलग एक्सपर्ट कोच होते हैं। एथेलेटिक्स, बास्केटबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल, जिम्नास्टिक, हैंडबॉल, हॉकी, कब्बड्डी, खो-खो, टेबल टेनिस, वॉलीबॉल, कुश्ती आदि खेलों की ट्रेनिंग यहां मिलती है। शिक्षा के साथ साथ खेल की ट्रेनिंग कर खिलाड़ियों को भरपूर प्रोत्साहन मिल सकता है। यहां करीब 250 सीट पर एडमिशन होते हैं।
इन सबके बावजूद यह ऐतिहासिक स्कूल प्रगति नहीं कर पाया। अगर उदासीनता नहीं दिखाई जाती तो आज इस स्कूल से पढ़े अनगिन खिलाड़ी ओलंपिक में गोल्ड जीतकर बीकानेर व राजस्थान का नाम रोशन कर चुके होते तो कोई क्रिकेटर भारतीय क्रिकेट टीम में खेल रहा होता। ऐसा ही कुछ बड़ा मुकाम अन्य खेलों में हासिल होता। जिस स्कूल का अस्तित्व अब राष्ट्रीय स्तर का हो जाना चाहिए था। उस स्कूल को अब तक आधारभूत सुविधाएं दिलवाने के लिए दानवीर सिंह व भैरूरतन ओझा जैसे खेल प्रेमियों को अनशन पर बैठना पड़ रहा है। बता दें कि अनशनकारियों की मांगे भी कोई ख़ास बड़ी नहीं है। मांग है कि डाइट के लिए मिलने वाली राशि को 100 रूपए से बढ़ाकर 300 रूपए किया जाए। एन आई एस डिप्लोमा धारी प्रशिक्षकों की ही नियुक्ति की जाए। सभी हॉस्टलों में कूलर व गीजर की व्यवस्था हो। खेल उपकरणों का बजट 2 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दिया जाए। डिस्पेंसरी व स्विमिंग पूल की सुविधा भी दी जाए।
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